Thursday, December 29, 2016

किसको आज फुर्सत है किसी की बात सुनने की







किसको आज फुर्सत है किसी की बात सुनने की 
अपने ख्बाबों और ख़यालों  में सभी मशगूल दिखतें हैं

 सबक क्या क्या सिखाता है जीबन का सफ़र यारों
 मुश्किल में बहुत मुश्किल से अपने दोस्त दिखतें हैं

क्यों  सच्ची और दिल की बात ख़बरों में नहीं दिखती 
नहीं लेना हक़ीक़त से  क्यों  मन से आज लिखतें हैं

धर्म देखो कर्म देखो  असर दीखता है पैसों का 
भरोसा हो तो किस पर हो सभी इक जैसे दिखतें हैं

सियासत में न इज्ज़त की ,न मेहनत की  कद्र यारों 
सुहाने स्वप्न और ज़ज्बात यहाँ हर रोज बिकते हैं

दुनियाँ में जिधर देखो हज़ारों रास्ते दीखते 
मंजिल जिनसे मिल जाये वह रास्ते नहीं मिलते 






मदन मोहन सक्सेना

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (31-12-2016) को "शीतलता ने डाला डेरा" (चर्चा अंक-2573) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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