Thursday, December 29, 2016

किसको आज फुर्सत है किसी की बात सुनने की







किसको आज फुर्सत है किसी की बात सुनने की 
अपने ख्बाबों और ख़यालों  में सभी मशगूल दिखतें हैं

 सबक क्या क्या सिखाता है जीबन का सफ़र यारों
 मुश्किल में बहुत मुश्किल से अपने दोस्त दिखतें हैं

क्यों  सच्ची और दिल की बात ख़बरों में नहीं दिखती 
नहीं लेना हक़ीक़त से  क्यों  मन से आज लिखतें हैं

धर्म देखो कर्म देखो  असर दीखता है पैसों का 
भरोसा हो तो किस पर हो सभी इक जैसे दिखतें हैं

सियासत में न इज्ज़त की ,न मेहनत की  कद्र यारों 
सुहाने स्वप्न और ज़ज्बात यहाँ हर रोज बिकते हैं

दुनियाँ में जिधर देखो हज़ारों रास्ते दीखते 
मंजिल जिनसे मिल जाये वह रास्ते नहीं मिलते 






मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, December 28, 2016

गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ


गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल का ही ग़ज़ल में सन्देश देना चाहता हूँ
ग़ज़ल मरती है नहीं बिश्बास देना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

ग़ज़ल जीवन का चिरंतन प्राण है या समर्पण का निरापरिमाण है
ग़ज़ल पतझड़ है नहीं फूलों भरा मधुमास है
तृप्ती हो मन की यहाँ ऐसी अनोखी प्यास है
ग़ज़ल के मधुमास में साबन मनाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

ग़ज़ल में खुशियाँ भरी हैं ग़ज़ल में आंसू भरे
या कि दामन में संजोएँ स्वर्ण के सिक्के खरे
ग़ज़ल के अस्तित्ब को मिटते कभी देखा नहीं
ग़ज़ल के हैं मोल सिक्कों से कभी होते नहीं
ग़ज़ल के दर्पण में ,ग़ज़लों को दिखाना चाहता हूँ


गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल  दिल की बाढ़ है और मन की पीर है
बेबसी में मन से बहता यह नयन का तीर है
ग़ज़ल है भागीरथी और ग़ज़ल जीवन सारथी
ग़ज़ल है पूजा हमारी ग़ज़ल मेरी आरती
ग़ज़ल से ही स्बांस की सरगम बजाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ



मदन मोहन सक्सेना

Monday, December 26, 2016

दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ




 तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको
तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा

तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है
मेरे पास तुम होगे तो यादों का फिर क्या होगा

तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहती
दिल में जो बसी सूरत उस सूरत का फिर क्या होगा

अपनी हर ख़ुशी हमको अकेली ही लगा करती
तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया होगा

दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ
तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा


दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ



मदन  मोहन सक्सेना

Friday, December 23, 2016

आम जनता को क्या मिला




मुझे नहीं पता कि नोटबंदी से
कितना कालाधन आया
कितने सफेदपोश  जेल के अंदर गए
किन्तु
मुझे पता चल गया है
कि
पैसा क्या चीज है
जिसके लिए
रिज़र्व बैंक को धारक को दिया गया अपना बयान
बार बार बदलना पड़ा।
अपने पैसो को पाने के लिये
किसान, गरीब ,मजदूर , बिधार्थी , ब्यापारी , कर्मचारी
सभी को  लाइन में लगना पड़ा।
इस जद्दोजेहद में
कितनो ने अपने जीबन लीला समाप्त कर ली
कितनों ने अपनों को खो दिया
कितनो की शादियाँ टूट गयीं
सरकार को बाहबाही लूटने का मौका मिला
बैंकों के पास खूब पैसा आ गया
कई कम्पनियों पेटयम ,मोबिक्विक ,फ्री चार्ज को अपने पैर पसारने का मौका मिला गया
कालेधन बालों ने नए नए तरीके ईजाद कर लिए अपना धन सफ़ेद करने के लिये
लाख टके का एक सवाल
आम जनता को क्या मिला
सिर्फ इंतज़ार और
मायूसी
हमेशा की तरह


मदन  मोहन सक्सेना





 

Thursday, December 8, 2016

ये सोचकर भ्रम में रहता है



कभी मानब
ये सोचकर भ्रम में रहता है
वह कितना सक्षम  ,समर्थ तथा शक्तिशाली है
जिसने
समुद्र, चाँद ,पर्बतों पर विजय प्राप्त कर ली है
परमाणु के बिषय में
गहन जानकारी प्राप्त कर ली है
भौतिक समृधि की सभी चीजों को प्राप्त कर लिया है
लेकिन शायद
कभी उसने ये विचार भी  किया है
कि वह  बास्तब में कितना
असक्षम , असमर्थ , लाचार  है
अपने माता पिता
जिनका ब्यक्तित्ब
हमारे आचरण ब्यबहार एबम चरित्र का
मूलाधार होता है
उनके चयन करने में
वह  पूरी तरह से असमर्थ होता है
ये मानब के बश में नहीं है
कि अपने माता पिता, परिबार को
अपनी आशानुरूप प्राप्त कर सके
अपना नाम
जो मानब को अक्सर माता पिता से मिलता है
उसकी पसंद नापसंद पर
उसका कोई अधिकार नहीं है
और अपने नाम कि खातिर
ना जानें !सभी क्या क्या करतें हैं
और धर्म
जिसको हम अपना जान लेतें हैं
जिसके सिद्धान्तों , आदर्शों ,परम्पराओं को
मानब मानने के लिए बाध्य है
उसी धरम कि ख़ातिर
ना जानें ? कितनें मंदिर मस्जिद गुरुदारें जलाएं जातें हैं
धर्म का चयन करनें में
किसी मानब कि कुछ भी नहीं चलती है
और ये अपना शरीर
जिसके साथ लगता है ,अपना अटूट सम्बन्ध है
किन्तु उसमें होने बाले
क्रमिक परिबर्तनों को
मानब अपनी आशानुरूप
परबर्तित नहीं कर सकता
ना ही ये शरीर
मानब कि किसी बात को मानने के लिए बाध्य है
मानब मन
जो बर्तमान को छोड़कर
अतीत तथा भबिष्य कि संदिग्ध गलियों में भटकत्ता रहता है
तथा हर पल
अपने को छोड़कर
दूसरों के विषय में ,सोचने में ब्यस्त रहता है
अपनी आँखें
जिनके पास अपनी ओर देखने का वक़्त नहीं है
सिबाय दूसरी ओर देखने के
और इसी में पूरा जीबन ब्यतीत होता है
लेकिन प्रत्येक मानब के मन में
ये भ्रम रहता है कि
मानब कितना
सक्षम  ,समर्थ तथा शक्तिशाली है

मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, December 6, 2016

गज़ल (सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना)

गज़ल (सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना)


जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं
सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना
देने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला सीखता क्यों है
कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को है
अक्सर प्यार में ,मन से मुझे फिर दीखता क्यों है
दिल भी यार पागल है ,ना जाने दीन दुनिया को
दिल से दिल की बातों पर आखिर रीझता क्यों है
आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है
सही चुपचाप रहता है और झूठा चीखता क्यों है

गज़ल (सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना)

मदन मोहन सक्सेना

Monday, November 28, 2016

देकर दुआएं आज फिर हम पर सितम बो कर गए.


दुनिया  बालों की हम पर जब से इनायत हो गयी
उस रोज से अपनी जख्म खाने की आदत हो गयी

शोहरत  की बुलंदी में ,न खुद से हम हुए वाकिफ़
गुमनामी में अपनेपन की हिफाज़त हो गयी

मर्ज ऐ  इश्क को सबने ,गुनाह जाना ज़माने में
अपनी नज़रों में मुहब्बत क्यों इबादत हो गयी

देकर दुआएं आज फिर हम पर सितम बो कर गए.
अब जिंदगी जीना , अपने लिए क़यामत हो गयी

दुनिया  बालों की हम पर जब से इनायत हो गयी
उस रोज से अपनी जख्म खाने की आदत हो गयी


मदन मोहन सक्सेना

Thursday, October 27, 2016

मैं उजाला और दीपावली






बह हमसे बोले हँसकर कि आज है दीवाली
उदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं ताली
मैं कैसें उनसे बोलूँ  कि जेब मेरी ख़ाली
जब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ ताली
बह  बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुम
देखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुम
इन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते हम
जिसके ना पास दौलत उससे न बोलते हम
मैंने जो देखा उनको खड़ें बह  मुस्करा रहे थे
दीवाली के दिन तो बह दौलत लुटा रहे थे
मैनें कहा ,सच्चाई मेरी पूजा इंसानियत से नाता
तुम जो कुछ भी कह रहे हो ,नहीं है मुझको भाता
वह   बोले हमसे हसकर ,कहता हूँ बह  तुम सुन लो
दुनियां में मिलता सब कुछ खुशियों से दामन भर लो
बातों में है क्या रक्खा मौके पे बात बदल लो
पैसों कि खातिर दुनियां में सब से तुम सौदा कर लो
वह  बोले हमसे हंसकर ,हकीकत भी तो यही है
इंसानों क़ी है दुनिया पर इंसानियत नहीं है
तुमको लगेगा ऐसा कि सब आपस में मिले हैं
पर ये न दिख सकेगा दिल में शिक्बे और गिले हैं
मैनें जो उनसे कहा क्या ,क्या कह जा रहे हैं
जो कुछ भी तुमने बोला ना हम समझ पा रहे हैं
मेरी नजर से देखो दुनियाँ  में प्यार ही मिलेगा
दौलत का नशा झूठा पल भर में ये छटेगा
दौलत है आनी जानी ये तो तो सब ही जानतें हैं
ये प्यार भरी दुनियां बस हम प्यार मानतें है
प्रेम के दीपक, तुम जब हर दिल में जलाओगे
सुख शांति समृधि की सच्ची दौलत तुम पाओगे
वह  बात सुन कर बोले ,यहाँ हर रोज है दीवाली
इन्सान की इस दुनियां का बस इश्वर है माली
बह  मुस्करा के बोले अब हम तो समझ गएँ हैं
प्रेम के दीपक भी मेरे दिल में जल गए हैं
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दिवाली का पर्व है फिर अँधेरे में हम क्यों रहें
चलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें



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दिवाली का पर्व है अँधेरा अब नहीं भाता मुझे
आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला  लिए



दीपाबली शुभ हो


मैं उजाला और दीपावली
मदन  मोहन सक्सेना 

Monday, October 17, 2016

पति पत्नी और करबाचौथ












कल यानि १९ अक्टूबर के दिन करवाचौथ पर  भारतबर्ष में सुहागिनें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए चाँद दिखने तक निर्जला उपबास रखती है . पति पत्नी का रिश्ता समस्त उतार चदाबों   के साथ इस धरती पर सबसे जरुरी और पवित्र रिश्ता है .आज के इस दौर में जब सब लोग एक दुसरे की जान लेने पर तुलें हुयें हों तो आजकल  पत्नी का उपवास रखना किसी अजूबे से कम नहीं हैं।  


मेरी  पत्नी (शिवानी सक्सेना )को समर्न्पित एक कबिता :


अर्पण आज तुमको हैं जीवन भर की सब खुशियाँ 

पल भर भी न तुम हमसे जीवन में जुदा होना
रहना तुम सदा मेरे दिल में दिल में ही खुदा बनकर 
ना हमसे दूर जाना तुम और ना हमसे खफा होना 

अपनी तो तमन्ना है सदा हर पल ही मुस्काओ 
सदा तुम पास हो मेरे ,ना हमसे दूर हो पाओ 
तुम्हारे साथ जीना है तुम्हारें साथ मरना है 
तुम्हारा साथ काफी हैं बाकि फिर  क्या करना है

अनोखा प्यार का बंधन इसे तुम तोड़ ना देना 
पराया जान हमको अकेला छोड़ ना देना 
रहकर दूर तुमसे हम जियें तो बो सजा होगी 
ना पायें गर तुम्हें दिल में तो ये मेरी सजा होगी 








पति पत्नी और करबाचौथ

मदन मोहन सक्सेना  



Tuesday, September 20, 2016

आखिर कब तक हम सहें


आखिर कब तक  हम सहें

फिर एक बार देश ने आंतकी हमला झेला
फिर एक बार कई सैनिक शहीद हो गए
 फिर एक बार परिबारों ने अपनोँ  को खोने का दंश झेला
फिर एक बार गृह , रक्षा मंत्री ने घटना स्थल का दौरा किया
फिर एक बार मंत्रियों ने प्रधान मंत्री को रिपोर्ट दी
फिर एक बार हाई लेवल मीटिंग की गयी  

फिर एक बार प्रधान मंत्री ने राष्ट्रपति को अबगत कराया
फिर एक बार सभी दलों ने घटना की निंदा की
फिर एक बार मीडिया में चर्चा हुयी
फिर एक बार पाक को अलग थलग करने की बात की गयी
फिर एक बार पाक से ब्यापारिक ,द्विपक्षीय रिश्तें ख़त्म करने की धमकी दी गयी
फिर एक बार पाक से ट्रेन और बस सेवा बंद करने की बात की गयी
फिर एक बार प्रधान मंत्री ने देश को भरोसा दिलाया कि  गुनाहगार को बख्शा नहीं जायेगा
और
फिर
फिर फिर
फिर फिर फिर
शहीद परिबारों ने कठोर कार्यबाही की मांग की।



आखिर कब तक  हम सहें

मदन मोहन सक्सेना

Monday, September 12, 2016

देखते है कि आपका मुँह खुलेगा भी या नहीं





 
होली के अबसर पर 
पानी की बर्बादी की बात करने बाले 
शिवरात्रि पर शिव पर दूध अर्पित करने को 
कुपोषण से जोड़ने बाले 
और  दूध की कमी का रोने बाले 
प्रकाश उत्सब पर पर्याबरण  की चिंता करने बाले 
तथाकथित  बुद्धिजीबी लोग 
कल बकरीद आने बाली है 
हम भी 
आपके मुख से 
जीब हत्या और  
सही क़ुरबानी के मायने 
क्या हैं 
इस पर आपके बिचार जानने को इच्छुक हैं 
देखते है कि 
आपका  मुँह  खुलेगा भी या नहीं 



मदन  मोहन सक्सेना




Wednesday, August 17, 2016

राखी रक्षा बंधन और रिश्तें





राखी का त्यौहार आ ही गया ,इस  त्यौहार को मनाने  के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कस ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछुता कैसे रह सकता है। मुझे अभी भी  याद है जब मैं छोटा था और राखी के दिन ना जाने कहाँ से साल भर ना दिखने बाली तथाकथित  मुहबोली बहनें अबतरित  हो जातीं थी  एक मिठाई का पीस और राखी देकर मेरे माँ बाबु से जबरदस्ती मनमाने रुपये बसूल कर ले जाती थीं। खैर जैसे जैसे समझ बड़ी बाकि लोगों से राखी बंधबाना बंद कर दी। जब तक घर पर रहा राखी बहनों से बंधबाता  रहा ,पैसों का इंतजाम पापा करते थे  मिठाई बहनें लाती थीं।अब  दूर रहकर राखी बहनें पोस्ट से भेज देती हैं कभी कभी मिठाई के लिए कुछ रुपये भी साथ रख देती हैं।यदि अबकाश होता है तो ज़रा अच्छे से मना लेते है। पोस्ट ऑफिस जाकर पैसों को भेजने की ब्यबस्था  करके ही अपने कर्तब्यों की इतिश्री  कर लेते हैं। राखी को छोड़कर पूरे साल मुझे याद भी रहता है कि  मेरी बहनें कैसी है या उनको भी मेरी कुछ खबर  रखने की इच्छा रहती है ,कहना बहुत  मुश्किल है . ये हालत कैसे बने या इसका जिम्मेदार कौन है काफी मगज मारी करने पर भी कोई एक राय बनती नहीं दीखती . कभी लगता है ये समय का असर है ,कभी लगता है सभी अपने अपने दायरों में कैद होकर रह गए हैं। पैसे की कमी , इच्छाशक्ति में कमी , आरामतलबी की आदत और प्रतिदिन के सँघर्ष ने रिश्तों को खोखला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
 
अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में
हर इंसान की एक कहानी सबकी ऐसे गुजर गयी


उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं

पर्व और त्यौहारों के देश कहे जाने वाले अपने देश में  कई ऐसे त्यौहार हैं  लेकिन इन सभी में राखी एक ऐसा पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और अधिक मजबूत और सौहार्दपूर्ण बनाए रखने का एक बेहतरीन जरिया सिद्ध हुआ है। राखी को  बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधते हुए उसकी लंबे और खुशहाल जीवन की प्रार्थना करती हैं वहीं भाई ताउम्र अपनी बहन की रक्षा करने और हर दुख में उसकी सहायता करने का वचन देते हैं।
अब जब पारिवारिक रिश्तों का स्वरूप भी अब बदलता जा रहा है  भाई-बहन को ही ले लीजिए, दोनों में झगड़ा ही अधिक  होता है और  वे एक-दूसरे की तकलीफों को समझते कम हैं ।आज  वे अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करते  ज्यादा  मिलते है लेकिन जब भाई को अपनी बहन की या बहन को अपनी भाई की जरूरत होती है तो वह मौजूद रहें ऐसी सम्भाबना कम होती जा रही है.
सामाजिक व्यवस्था और पारिवारिक जरूरतों के कारण आज बहुत से भाई अपनी बहन के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते ऐसे में रक्षाबंधन का दिन उन्हें फिर से एक बाद निकट लाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। लेकिन  बढ़तीं महंगाई , रिश्तों के खोखलेपन और समय की कमी की बजह से  बहुत कम भाई ही अपनी बहन के पास राखी बँधबाने  जा पाते हों . सभी रिश्तों की तरह भाई बहन का रिश्ता भी पहले जैसा नहीं रहा लेकिन राखी का पर्ब  हम सबको सोचने के लिए मजबूर तो करता ही है कि  सिर्फ उपहार और पैसों से किसी भी रिश्तें में जान नहीं डाली जा सकती। राखी के पर्ब  के माध्यम से भाई बहनों को एक दुसरे की जरूरतों को समझना होगा और एक दुसरे की  दशा  को समझते हुए उनकी भाबनाओं  की क़द्र करके राखी की महत्ता को पहचानना होगा।

राखी रक्षा बंधन और रिश्तें

मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, August 9, 2016

बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम ना मिल सके

  




कल  तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ
इक शख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान है

बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम ना मिल सके
जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अनजान है

गर कहोगें दिन  को दिन तो लोग जानेगें गुनाह 
अब आज के इस दौर में दीखते कहाँ  इन्सान है

इक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता रहा
ये वक़्त की साजिश है या फिर वक़्त का एहसान है

क्यों गैर बनकर पेश आते वक़्त पर अपने ही लोग
अब अपनों की पहचान करना अब नहीं आसान है 

प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर 
जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है 
  
बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम ना मिल सके

मदन मोहन सक्सेना

Friday, July 29, 2016

मेरी पोस्ट (जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)


प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट ,(जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित हुयी है , बहुत बहुत आभार जागरण जंक्शन टीम। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .




Dear User,

Your जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा has been featured on Jagran Junction

Click Here to visit your blog : मैं, लेखनी और जिंदगी

Thanks!
JagranJunction Team 
 
 
 http://madansbarc.jagranjunction.com/2016/07/21/%E0%A4%9C%E0%A4%AC-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B5-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%9B%E0%A5%8B%E0%A5%9C%E0%A4%BE/
 
 जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा
शहर में ठिकाना खोजा
पता नहीं आजकल
हर कोई मुझसे
आँख मिचौली का खेल क्यों खेला करता है
जिसकी जब जरुरत होती है
गायब मिलता है
और जब जिसे नहीं होना चाहियें
जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है
कल की ही बात है
मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी
सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूं
पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना था
जबसे इधर क्या आया
या कहिये कि मुंबई जैसे महानगर की
दीबारों के बीच आकर फँस गया
पूछा
क्या बात है
आजकल आती नहीं हो इधर।
पहले तो आंगन भर-भर आती थी।
दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा।
पड़ोसियों ने अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की
तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी।
अक्सर सुबह देखता हूं
पड़ी रहती हो
आजकल उनके छज्जों पर
हमारी छत तो अब तुम्हें सुहाती ही नहीं ना
लेकिन याद रखो
ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग
बड़ी सादगी से लूटते हैं
फिर चाहे वो इज्जत हो या दौलत।
महीनों के बाद मिली हो
इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली
उसने कुछ बोला नहीं
बस हवा में खुशबु घोल कर
खिड़की के पीछे चली गई
सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ
धत्त तेरी की
फिर गायब
ये महानगर की धूप भी न
बिलकुल तुम पर गई है
हमेशा आँख मिचौली का खेल खेल करती है
और मैं न जाने क्या क्या सोचने लग गया
उसके बारे में
महानगर के बारे में
और
जिंदगी के बारे में

जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा

मेरी पोस्ट  (जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)



मदन मोहन सक्सेना
 

Thursday, July 28, 2016

आज हम फिर बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की


 



नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके हैं  आज जो
नापने को कह रहे , हमसे बह दूरियाँ आकाश की

आज हम महफूज है क्यों दुश्मनों के बीच में
आती नहीं है रास अब दोस्ती बहुत ज्यादा पास की

बँट  गयी सारी जमी ,फिर बँट  गया ये आसमान
आज  हम फिर  बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की

हर जगह महफ़िल सजी पर दर्द भी मिल जायेगा
अब हर कोई कहने लगा है  आरजू बनवास की

मौत के साये में जीती चार पल की जिंदगी
क्या मदन ये सारी दुनिया, है बिरोधाभास की

 

आज  हम फिर  बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की

मदन मोहन सक्सेना 

Monday, July 25, 2016

सांसों के जनाजें को तो सब ने जिंदगी जाना








देखा जब नहीं उनको और हमने गीत ना  गाया
जमाना हमसे ये बोला की फागुन क्यों नहीं आया

फागुन गुम हुआ कैसे ,क्या   तुमको कुछ चला मालूम
कहा हमने ज़माने से कि हमको कुछ नहीं मालूम

पाकर के जिसे दिल में  ,हुए हम खुद से बेगाने
उनका पास न आना ,ये हमसे तुम जरा पुछो

बसेरा जिनकी सूरत का हमेशा आँख में रहता
उनका न नजर आना, ये हमसे तुम जरा पूछो

जीवित है तो जीने का मजा सब लोग ले सकते
जीवित रहके, मरने का मजा हमसे जरा पूछो

रोशन है जहाँ   सारा मुहब्बत की बदौलत ही
अँधेरा दिन में दिख जाना ,ये हमसे तुम जरा पूछो

खुदा की बंदगी करके  मन्नत पूरी सब करते
इबादत में सजा पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो

तमन्ना  सबकी रहती है  जन्नत उनको मिल जाए
जन्नत रस ना आना ये हमसे तुम जरा पूछो

सांसों के जनाजें को  तो सब  ने जिंदगी जाना
दो पल की जिंदगी पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो


सांसों के जनाजें को  तो सब  ने जिंदगी जाना

मदन मोहन सक्सेना 


Thursday, July 21, 2016

गज़ल (तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा)

                            
तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको
तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा

तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है
मेरे पास तुम होगें तो यादों का फिर क्या होगा

तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहती
दिल में जो बसी सूरत उस सूरत का फिर क्या होगा

अपनी हर ख़ुशी हमको अकेली ही लगा करती
तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया होगा

दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ
तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा


गज़ल (तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा)
मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, July 20, 2016

बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था




जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी
बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था

बारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़री
भोले भाले चेहरे में सयानापन समाता था

मिलते हाथ हैं लेकिन दिल मिलते नहीं यारों
मिलाकर हाथ, पीछे से मुझको मार जाता था

सुना है आजकल कि बह नियमों को बनाता है
बचपन में गुरूजी से जो अक्सर मार खाता था

उधर माँ बाप तन्हा थे इधर बेटा अकेला था
पैसे की ललक देखो दिन कैसे दिखाता था

जिसे देखे हुआ अर्सा , उसका हाल जब पूछा
बाकी ठीक है कहकर वह ताना मार जाता था



मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, July 13, 2016

मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है






 मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है

किसकी कुर्बानी को किसने याद रक्खा है दुनिया में
जलता तेल और बाती है कहते दीपक जलता है

मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है
उसकी यादों का दिया अपने दिल में यार जलता है

बैसे जीवन के सफर में तो कितने लोग मिलते हैं
किसी चेहरे पे अपना  दिल  अभी भी तो मचलता है

समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों
रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है

मुसीबत यार अच्छी है पता तो यार चलता है
कैसे कौन कब कितना,  रंग अपना बदलता है


मुहब्बत को बयाँ करना किसके यार बश में है 

 मदन मोहन सक्सेना




Saturday, June 11, 2016

ये दीवानगी अपनी नहीं तो और फिर क्या है


हम आज तक खामोश हैं  और वो भी कुछ कहते नहीं
दर्द के नग्मों  में हक़ बस मेरा नजर आता है 


देकर दुआएँ  आज फिर हम पर सितम वो  कर गए
अब क़यामत में उम्मीदों का सवेरा नजर आता है


क्यों रोशनी के खेल में अपना आस का पँछी  जला
हमें अँधेरे में हिफाज़त का बसेरा नजर आता है


इस कदर अनजान हैं  हम आज अपने हाल से
हकीकत में भी ख्वावों का घेरा नजर आता है 


ये दीवानगी अपनी नहीं तो और  फिर क्या है मदन
हर जगह इक शख्श का मुझे  चेहरा नजर आता है



मदन मोहन सक्सेना

Saturday, May 7, 2016

मातृदिवस पर शुभकामनाएं

मातृदिवस पर शुभकामनाएं

बदलते बक्त में मुझको दिखे बदले हुए चेहरे
माँ का एक सा चेहरा , मेरे मन में पसर जाता

नहीं देखा खुदा को है ना ईश्वर से मिला मैं हुँ
मुझे माँ के ही चेहरे मेँ खुदा यारों नजर आता

मुश्किल से निकल आता, करता याद जब माँ को
माँ कितनी दूर हो फ़िर भी दुआओं में असर आता

उम्र गुजरी ,जहाँ देखा, लिया है स्वाद बहुतेरा
माँ के हाथ का खाना ही मेरे मन में उतर पाता

खुदा तो आ नहीं सकता ,हर एक के तो बचपन में
माँ की पूज ममता से अपना जीबन , ये संभर जाता

जो माँ की कद्र ना करते ,नहीं अहसास उनको है
क्या खोया है जीबन में, समय उनका ठहर जाता

Thursday, May 5, 2016

पानी पॉलिटिक्स और प्रीमियर लीग






वो तो भला हो सुप्रीम कोर्ट का 
और महाराष्ट्र हाई कोर्ट का 
जिसकी बजह से
सूखाग्रस्त प्रदेश से 
लीग का आयोजन बाहर चला गया
बरना मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन और आई पी एल  ने तो 
पूरी बेशर्मी से अपने कुतर्को को सामने रखने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। 
झूठे बादे किये गए थे 
यदि आयोजन यहाँ हो रहा होता तो 
प्यासे ,सूखा ग्रस्त लोगों के हिस्से का पानी 
पेप्सी और कोक के इशारों पर नाचने बाले 
तथाकथित खिलाड़ियों के पैरों तले रौंदने बाली घास को
हरा  भरा रखने में खर्च हो रहा होता 
और आम जनता 
ये सब देखने को बिबश रहती
मराठी होते हुए भी गावस्कर और बेंगसर्कर को
जितनी फिक्र क्रिकेट को बचाने की है 
उतनी चिंता प्यासे ,सूखा ग्रस्त लोगों की नहीं है 
ये समझ से परे  है। 
भले ही राजीब शुक्ल का ताल्लुक कांग्रेस से हो 
अनुराग ठाकुर का सम्बन्ध भारतीय जनता पार्टी से हो 
और  शरद पवार राष्ट्रिय कांग्रेस पार्टी से हों 
पर 
क्रिकेट की भलाई के लिए सब एक मत हैं। 



 पानी पॉलिटिक्स और प्रीमियर लीग 

मदन मोहन सक्सेना


Thursday, March 31, 2016

जिधर देखता हूँ उधर तू मिला है


सपने सजाने लगा आजकल हूँ
मिलने मिलाने लगा आज कल हूँ
हुयी शख्शियत उनकी  मुझ पर हाबी
खुद को भुलाने लगा आजकल हूँ


इधर तन्हा  मैं था उधर तुम अकेले
किस्मत ,समय ने क्या खेल खेले
गीत ग़ज़लों की गंगा तुमसे ही पाई
गीत ग़ज़लों को गाने लगा आजकल हूँ


जिधर देखता हूँ उधर तू मिला है
ये रंगीनियों का गज़ब सिलसिला है
नाज क्यों ना मुझे अपने  जीवन पर हो
तुमसे रब को पाने लगा  आजकल हूँ



सपने सजाने लगा आजकल हूँ
मिलने मिलाने लगा आज कल हूँ
हुयी शख्शियत उनकी  मुझ पर यूँ  हाबी
खुद को भुलाने लगा आजकल हूँ




 

(जिधर देखता हूँ उधर तू मिला है)


मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, March 23, 2016

आयी आज होली है

आयी आज होली है

मन से मन भी मिल जाये , तन से तन भी मिल जाये
प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है

मौसम आज रंगों का छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है

ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है

क्या जीजा हों कि साली हों ,देवर हो या भाभी हो
दिखे रंगनें में रंगानें में , सभी मशगूल होली है

ना शिकबा अब रहे कोई , ना ही दुश्मनी पनपे
गले अब मिल भी जाओं सब, आयी आज होली है

प्रियतम क्या प्रिया क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं
चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .

आयी आज होली है

मदन मोहन सक्सेना

Thursday, March 10, 2016

मेरी पोस्ट , अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस ( उपयोगिता , सन्दर्भ और प्रासंगिकता , एक बिबेचना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित

प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट , अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस ( उपयोगिता , सन्दर्भ और प्रासंगिकता , एक बिबेचना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित हुयी है ,इससे पहले "जीवन  के रंग" , "बिरह के अहसास " और "चंद शेर आपके लिए" और कल की ही बात है " गुनगुनाना  चाहता हूँ "  को प्रकाशित किया गया था . बहुत बहुत आभार जागरण जंक्शन टीम। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .

 
लिंक : 
 http://madansbarc.jagranjunction.com/2016/03/08/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5/



अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस ( उपयोगिता , सन्दर्भ और प्रासंगिकता , एक बिबेचना )


“स्त्रियाँ ही हैं,
जो लोगों की अच्छी सेवा कर सकती हैं,
दूसरों की भरपूर मदद कर सकती हैं।
जिंदगी को अच्छी तरह प्यार कर सकती हैं
और मृत्यु को गरिमा प्रदान कर सकती हैं।“
( एनी बेसंन्ट )
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 8 मार्च को मनाया जाता है।विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर यह दिवस सबसे पहले यह २८ फ़रवरी १९०९ में मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखरी इतवार के दिन मनाया जाने लगा। १९१० में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिलवाना था क्योंकि, उस समय अधिकतर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था।
१९१७ में रूस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। ज़ार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिया। उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनो की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक १९१७ की फरवरी का आखरी इतवार २३ फ़रवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन ८ मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। इसी लिये ८ मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स और कल्पना चावला अंतरिक्ष पटल की खास पहचान हैं। प्रथम महिला रेलगाङी ड्राइवर सुरेखा यादव, जो कि भारत की ही नही वरन एशिया की भी पहली महिला ड्राइवर हैं।
देश की सुरक्षा सबसे अहम होती है, तो इस क्षेत्र में आखिर महिलाओं की भागीदारी को कम क्यूं आंका जाए। देश की मिसाइल सुरक्षा की कड़ी में 5000 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली अग्नि-5 मिसाइल की जिस महिला ने सफल परीक्षण कर पूरे विश्व मानचित्र पर भारत का नाम रौशन किया है, वह शख्सियत हैं टेसी थॉमस। डॉ. टेसी थॉमस को कुछ लोग ‘मिसाइल वूमन’ कहते हैं, तो कई उन्हें ‘अग्नि-पुत्री’ का खिताब देते हैं। पिछले 20 सालों से टेसी थॉमस इस क्षेत्र में मजबूती से जुड़ी हुई हैं। टेसी थॉमस पहली भारतीय महिला हैं, जो देश की मिसाइल प्रोजेक्ट को संभाल रही हैं। टेसी थॉमस ने इस कामयाबी को यूं ही नहीं हासिल किया, बल्कि इसके लिए उन्होंने जीवन में कई उतार-चढ़ाव का सामना भी करना पड़ा। आमतौर पर रणनीतिक हथियारों और परमाणु क्षमता वाले मिसाइल के क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व रहा है। इस धारणा को तोड़कर डॉ. टेसी थॉमस ने सच कर दिखाया कि कुछ उड़ान हौसले के पंखों से भी उड़ी जाती।
डॉ. किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा की प्रथम वरिष्ठ महिला अधिकारी हैं। उन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए अपनी कार्य-कुशलता का परिचय दिया है। वे संयुक्त आयुक्त पुलिस प्रशिक्षण तथा दिल्ली पुलिस स्पेशल आयुक्त (खुफिया) के पद पर कार्य कर चुकी हैं।निःस्वार्थ कर्तव्यपरायणता के लिए उन्हें शौर्य पुरस्कार मिलने के अलावा उनके अनेक कार्यों को सारी दुनिया में मान्यता मिली है, जिसके परिणामस्वरूप एशिया का नोबल पुरस्कार कहा जाने वाला रमन मैगसेसे पुरस्कार से उन्हें नवाजा गया. नशे की रोकथाम के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा किया गया ‘सर्ज साटिरोफ मेमोरियल अवार्ड’ इसका ताजा प्रमाण है।
भारतीय ट्रैक ऍण्ड फ़ील्ड की रानी” माने जानी वाली पी॰ टी॰ उषा भारतीय खेलकूद में 1979 से हैं। वे भारत के अब तक के सबसे अच्छे खिलाड़ियों में से हैं। उन्हें “पय्योली एक्स्प्रेस” नामक उपनाम दिया गया था। 1983 में सियोल में हुए दसवें एशियाई खेलों में दौड़ कूद में, पी॰ टी॰ उषा ने 4 स्वर्ण व 1 रजत पदक जीते। वे जितनी भी दौड़ों में हिस्सा लीं, सबमें नए एशियाई खेल कीर्तिमान स्थापित किए। 1985 में जकार्ता में हुई एशियाई दौड-कूद प्रतियोगिता में उन्होंने पाँच स्वर्ण पदक जीते। एक ही अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में छः स्वर्ण जीतना भी एक कीर्तिमान है। ऊषा ने अब तक 101 अतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं। वे दक्षिण रेलवे में अधिकारी पद पर कार्यरत हैं। 1985 में उन्हें पद्म श्री व अर्जुन पुरस्कार दिया गया।
मैरी कॉम पांच बार ‍विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी हैं। दो वर्ष के अध्ययन प्रोत्साहन अवकाश के बाद उन्होंने वापसी करके लगातार चौथी बार विश्व गैर-व्यावसायिक बॉक्सिंग में स्वर्ण जीता। उनकी इस उपलब्धि से प्रभावित होकर एआइबीए ने उन्हें मॅग्नीफ़िसेन्ट मैरी (प्रतापी मैरी) का संबोधन दिया। वह 2012 के लंदन ओलम्पिक मे महिला मुक्केबाजी मे भारत की तरफ से जाने वाली एकमात्र महिला थीं। मैरी कॉम ने सन् 2001 में प्रथम बार नेशनल वुमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती। अब तक वह छह राष्ट्रीय खिताब जीत चुकी है। बॉक्सिंग में देश का नाम रौशन करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2003 में उन्हे अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया एवं वर्ष 2006 में उन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जुलाई 29, 2009 को वे भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार के लिए (मुक्केबाज विजेंदर कुमार तथा पहलवान सुशील कुमार के साथ) चुनीं गयीं।सायना नेहवाल, सानिया मिर्जा जैसी कई महिलाएं खेल जगत की गौरवपूर्ण पहचान हैं। 1984- बछेन्द्री पाल दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला हैं।
महिलाओं के अधिकार के लिये लङने वाली वीर नारी नेन्सी एस्टर, ब्रिटिश संसद की पहली महिला सासंद बनी। विश्व के राजनीतिक पटल पर आज अनेक देशों के सर्वोच्च पद पर महिलाओं का वर्चस्व है। श्रीलंका की प्रधानमंत्री श्रीमावो भंडार नायके विश्व की प्रथम महिला राष्ट्रपति निर्वाचित हुई। विश्वराजनीति के पटल पर पहली महिला राष्ट्रपति का गौरव फिलीपीन्स की मारिया कोराजोन एक्यीनो को जाता है। रजीया सुल्तान हो या बेनीजीर भुट्टो या बेगम खालिदा जिया जैसी कई साहसी मुस्लिम महिलाओं ने भी राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। भारत जैसे शक्तिशाली देश की कमान इंदिरा गाँधी द्वारा संचालित की जा चुकी है। अनेक राज्यों की महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ,जयललिता आज भी अपने कार्य को सफलता पूर्वक अंजाम दे रहीं हैं। अभी हाल ही में एशिया की चौथी सबसे बङी अर्थव्वस्था की नेता पार्क ग्यून हेई ने दक्षिण कोरिया की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेकर नारी वर्ग के गौरव को और आगे बढाया है।
साहित्य जगत में भी महिलाओं का अभूतपूर्व योगदान रहा है। हिंदी साहित्य में ऐसी गंभीर लेखिकाओं की कमी नही है जिन्होने अपनी संवेदनाओं को अभिव्यक्त करके विस्तृत साहित्य का सृजन किया है। महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, महाश्वेता देवी, आशापूर्णा देवी, मैत्रिय पुष्पा जैसी अनेक महिलाओं ने असमान्य परिस्थितियों में भी साहित्य जगत को उत्कृष्ट रचनाओं से शुशोभित किया है।
दृढ़ इच्छाशक्ति एवं शिक्षा ने नारी मन को उच्च आकांक्षाएँ, सपनों के सप्तरंग एवं अंतर्मन की परतों को खोलने की नई राह दी है। इंद्रा नूई, चन्द्रा कोचर, नैना लाल किदवई, किरण मजुमदार, मजुमदार शॉ, स्वाति पिरामल, चित्रा रामकृष्णा,जैसी अनेक महिलाएं आज वाणिज्य जगत में प्रतिष्ठित कंपनियो की सीईओ बनकर बहुत ही सफलता पूर्वक अपने कार्य को अंजाम दे रही हैं.
इन सबके बाबजूद लाख टके का सबल फिर से मन में गूंजता है कि
फिर क्यों
आधी आबादी अभी भी अपने अधिकारों से बंचित है
महिलाओँ के बिरुद्ध अपराध कब कम होंगें
महिला पुरुष का लिंग अनुपात कब बराबरी पर आएगा
अपने घर की महिलाओँ और बाहर की महिलाओँ के प्रति सोच कब एक सी होगी
ये प्रश्न कब तक अनुतर्रित रहेंगें
या फिर हम सब (महिला, पुरुष , राजनेता , समाजसेबी , .. अन्य )
जिम्मेदारी एक दूसरे पर डालकर
८ मार्च को ऐसे ही औपचारिकता पूरी करते रहेंगें।


मदन मोहन सक्सेना

Friday, February 26, 2016

बिलकुल तुम पर




जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा
शहर में ठिकाना खोजा
पता नहीं आजकल
हर कोई मुझसे
आँख मिचौली का खेल क्यों खेला  करता है
जिसकी जब जरुरत होती है
गायब मिलता है
और जब जिसे नहीं होना चाहियें
जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है
कल की ही बात है
मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी
सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूं
पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना था
जबसे इधर क्या आया
या कहिये कि मुंबई जैसे महानगर की
दीबारों के बीच आकर फँस गया
पूछा
क्या बात है
आजकल आती नहीं हो इधर।
पहले तो आंगन भर-भर आती थी।
दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा।
पड़ोसियों ने अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की
तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी।
अक्सर सुबह देखता हूं
पड़ी रहती हो
आजकल उनके छज्जों पर
हमारी छत तो अब तुम्हें सुहाती ही नहीं ना
लेकिन याद रखो
ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग
बड़ी सादगी से लूटते हैं
फिर चाहे वो इज्जत हो या दौलत।
महीनों के  बाद मिली हो
इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली
उसने कुछ बोला नहीं
बस हवा में खुशबु घोल कर
खिड़की के पीछे चली गई
सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ
धत्त तेरी की
फिर गायब
ये महानगर की धूप भी न
बिलकुल तुम पर गई है
हमेशा आँख मिचौली का खेल खेल करती है
और मैं न जाने क्या क्या सोचने लग गया
उसके बारे में
महानगर के बारे में
और
जिंदगी के बारे में





(बिलकुल तुम पर)
 


मदन मोहन सक्सेना

Sunday, January 24, 2016

गणतन्त्र दिवस , देश और हम






कल गणतंत्र दिवस पर्ब है
सरकारी अमला जोर शोर से तैयारी कर रहा है
स्कूल के बच्चे और टीचर अपने तरह से जुटे हुए हैं गणतन्त्र दिवस पर्ब मनाने के लिए
कुछ लोग छुट्टी जाकर
लॉन्ग वीकेंड को मनाने को लेकर उत्साहित हैं
छोटी मुनिया , छोटू
ये सोच कर बहु खुश है कि
पेपर और प्लास्टिक के झंडे से अधिक पैसे मिलेंगें
सोसाइटी ऑफिस के लोग
देश भक्ति से युक्त गानो की सी डी और ऑडियो को खोजने में ब्यस्त हैं
कि पुरे दिन इन गानो के बजाना होगा
बच्चे लोग इस बात से खुश है कि
कल स्कूल में पढ़ाई नहीं होगी
ढेर सारा मजा और  मिठाई अलग से मिलेगी
लेकिन
भारत  काका इस बात से खिन्न हैं
कि अपनी पूरी जिंदगी सेना में खपाने के बाद भी
सरकार उनकी सुध लेने को तैयार नहीं है (एक रैंक एक पेंशन)
अपनी आँख और खूबसूरती खो चुकी
भारती ये सोचकर परेशान है कि
आधी आबादी को जीने का बराबरी का हक़ कब मिलेगा
और मिलेगा भी या नहीं
कुछ आशाबादी लोग
अब भी इस आशा में है कि
कल से शायद
भगबान
कुछ ऐसा कर दें कि
उनकी जिंदगी में अच्छे दिन आ जाये
और बे भी
आजाद भारत
के
आजाद नागरिक के रूप में
अपना जीबन
बेहतर ढंग से जी सकें 



गणतंत्र दिवस (२६ जनबरी ) की हार्दिक शुभकामनायें)

Tuesday, January 19, 2016

तुम्हारी याद



तुम्हारी याद


जुदा हो करके के तुमसे अब ,तुम्हारी याद आती है
मेरे दिलबर तेरी सूरत ही मुझको रास आती है

कहूं कैसे मैं ये तुमसे बहुत मुश्किल गुजारा है
भरी दुनियां में बिन तेरे नहीं कोई सहारा है

मुक्कद्दर आज रूठा है और किस्मत आजमाती है
नहीं अब चैन दिल को है न मुझको नींद आती है..

कदम बहकें हैं अब मेरे ,हुआ चलना भी मुश्किल है
ये मौसम है बहारों का , रोता आज ये दिल है

ना कोई अब खबर तेरी ,ना मिलती आज पाती है
हालत देखकर मेरी ये दुनिया मुस्कराती है

बहुत मुश्किल है ये कहना किसने खेल खेला है
उधर तन्हा अकेली तुम, इधर ये दिल अकेला है

पाकर के तन्हा मुझको उदासी पास आती है
सुहानी रात मुझको अब नागिन सी डराती है



मदन मोहन सक्सेना