Thursday, October 1, 2015

मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक १ ,अक्टूबर २०१५ में



प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२  , अंक १    ,अक्टूबर  २०१५ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .




मेरे जिस टुकड़े को  दो पल की दूरी बहुत सताती थी
जीवन के चौथेपन में अब ,वह  सात समन्दर पार हुआ
  
रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या व्यवहार हुआ 

दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो ब्यापार हुआ

मेरे प्यारे गुलशन को न जानें किसकी नजर लगी है
युवा को अब काम नहीं है बचपन अब  बीमार हुआ

जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रैंड हो गए
शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ

ताई ताऊ , दादा दादी ,मौसा मौसी  दूर हुएँ
अब हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना