Wednesday, February 20, 2013

बिबश्ता

















बिबश्ता

आँखों  में  जो सपने थे, सपनों में जो सूरत थी
नजरें जब मिली उनसे बिलकुल बैसी  मूरत थी

जब भी गम मिला मुझको या अंदेशे कुछ पाए हैं
बाजू में बिठा कर के ,उन्होंने अंदेशे मिटाए हैं

उनका साथ पाकर के तो दिल ने ये ही  पाया है
अमाबस की अँधेरी में ज्यों चाँद निकल पाया है

जब से मैं मिला उनसे , दिल को यूँ खिलाया है
अरमां जो भी मेरे थे हकीकत में  मिलाया है

बातें करनें जब उनसे  हम उनके पास हैं जाते
चेहरे  पे जो रौनक है उनमें हम फिर खो जाते

ये मजबूरी जो अपनी है हम  उनसे बच नहीं पाते
जब देखे रूप उनका तो हम बाते कर नहीं पाते 

बिबश्ता देखकर मेरी सब कुछ बह समझ  जाते 
आँखों से ही करते हैं बे अपने दिल की सब बातें




काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना