Monday, February 11, 2013

मुक्तक (आदत)






















मयखाने की चौखट को कभी मदिर न समझना तुम
मयखाने जाकर पीने की मेरी आदत नहीं थी
चाहत से जो देखा मेरी ओर उन्होंने
आँखों में कुछ छलकी मैंने थोड़ी पी थी



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना