मित्रों कभी मैनें एक शायर का कलाम पढ़ा था उससे प्रेरित होकर एक शेर लिखा है आपके विचारों कि प्रतीक्षा रहेगी।
अँधेरा भी भला है मैं उस कि कद्र करता हूँ
शबे महताब में अक्सर हुयीं है चोरियां मेरी (अज्ञात)
अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल (मदन मोहन सक्सेना)
अँधेरा भी भला है मैं उस कि कद्र करता हूँ
शबे महताब में अक्सर हुयीं है चोरियां मेरी (अज्ञात)
अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल (मदन मोहन सक्सेना)
सादर
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति -
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : पुरानी फाईलें और खतों के चंद कतरे !
वाह ! बहुत बढ़िया प्रस्तुति . आभार . नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं .
ReplyDeleteकृ्प्या विसिट करें : http://swapniljewels.blogspot.in/2014/01/blog-post_5.html
http://swapniljewels.blogspot.in/2013/12/blog-post.html
मदन जी बहुत खूब !
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