Thursday, January 31, 2013

प्रीत





 









प्रीत



नज़रों ने नज़रों से नजरें मिलायीं 
प्यार मुस्कराया और प्रीत मुस्कराई 

प्यार के तराने जगे गीत गुनगुनाने लगे 
फिर मिलन की ऋतू  आयी भागी तन्हाई 

दिल से फिर दिल का करार होने लगा 
खुद ही फिर खुद से क्यों प्यार होने लगा 

नज़रों ने नज़रों से नजरें मिलायीं 
प्यार मुस्कराया और प्रीत मुस्कराई 


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

Thursday, January 24, 2013

मेरा भारत महान




मेरा भारत महान
जय हिंदी जय हिंदुस्तान मेरा भारत बने महान

गंगा यमुना सी नदियाँ हैं जो देश का मन बढ़ाती हैं
सीता सावित्री सी देवी जो आज भी पूजी जाती हैं

यहाँ जाति धर्म का भेद नहीं सब मिलजुल करके रहतें हैं
गाँधी सुभाष टैगोर तिलक नेहरु का भारत कहतें हैं

यहाँ नाम का कोई जिक्र नहीं बस काम ही देखा जाता है
जिसने जब कोई काम किया बह ही सम्मान पाता है

जब भी कोई मिले आकर बो गले लगायें जातें हैं
जन आन मान की बात बने तो शीश कटाए जातें हैं

आजाद भगत बिस्मिल रोशन बीरों की ये तो जननी है
प्रण पला जिसका इन सबने बह पूरी हमको करनी है

मथुरा हो या काशी हो चाहें अजमेर हो या अमृतसर
सब जातें प्रेम भाब से हैं झुक जातें हैं सबके ही सर.
  



प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, January 22, 2013

मुक्तक (जान)

















ये जान जान कर जान गया ,ये जान तो मेरी जान नहीं
जिस जान के खातिर  जान है ये, इसमें उस जैसी शान नहीं

जब जान बो मेरी चलती   है ,रुक जाते हैं चलने बाले
जिस जगह पर उनकी नजर पड़े ,थम जाते हैं  मय के प्याले 


मुक्तक प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

Thursday, January 17, 2013

बोल




उसे हम बोल क्या बोलें जो दिल को दर्द दे जाये
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें ..

जीवन के सफ़र में जो मुसीबत में भी अपना हो
राज ए दिल मोहब्बत के, उसी से यार खोलेंगें  ..

जब अपनों से और गैरों से मिलते हाथ सबसे हों
किया जिसने भी जैसा है , उसी से यार तोलेंगें ..

अपना क्या, हम तो बस, पानी की ही माफिक हैं
 मिलेगा प्यार से हमसे ,उसी  के यार होलेंगें ..

जितना हो जरुरी ऱब, मुझे उतनी रोशनी देना 
अँधेरे में भी डोलेंगें उजालें में भी डोलेंगें ..
 



मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, January 9, 2013

झमेले





अपनी जिंदगी गुजारी है ख्बाबों के ही सायें में
ख्बाबों  में तो अरमानों के जाने कितने मेले हैं  

भुला पायेंगें कैसे हम ,जिनके प्यार के खातिर
सूरज चाँद की माफिक हम दुनिया में अकेले हैं  

महकता है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही
मुहब्बत को निभाने में फिर क्यों सारे झमेले हैं  

ये उसकी बदनसीबी गर ,नहीं तो और फिर क्या है
जिसने पाया है बहुत थोड़ा ज्यादा गम ही झेले हैं 

प्रस्तुति:

मदन मोहन सक्सेना

Thursday, January 3, 2013

सच्चा प्यार





बोलेंगे  जो  भी  हमसे  बो ,हम ऐतवार कर  लेगें
जो कुछ  भी उनको प्यारा  है ,हम उनसे प्यार कर  लेगें

बो  मेरे   पास  आयेंगे   ये  सुनकर  के   ही  सपनो  में
क़यामत  से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें

मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है
उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें

जीवन भर की सब खुशियाँ ,उनके बिन अधूरी है
अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें

हमको प्यार है उनसे और करते प्यार बो हमको
गर  अपना प्यार सच्चा है तो मंजिल पर कर लेगें



मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, January 2, 2013

ग़ज़ल




सजा  क्या खूब मिलती है ,  किसी   से   दिल  लगाने  की
तन्हाई  की  महफ़िल  में  आदत  हो  गयी   गाने  की 

हर  पल  याद  रहती  है , निगाहों  में  बसी  सूरत
तमन्ना  अपनी  रहती  है  खुद  को  भूल  जाने  की 

 उम्मीदों   का  काजल    जब  से  आँखों  में  लगाया  है
कोशिश    पूरी  रहती  है , पत्थर  से  प्यार  पाने  की 

अरमानो  के  मेले  में  जब  ख्बाबो  के  महल   टूटे
बारी  तब  फिर  आती  है , अपनों  को  आजमाने  की

मर्जे  इश्क  में   अक्सर हुआ करता है ऐसा भी
जीने पर हुआ करती है ख्बहिश मौत पाने की



ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना