Sunday, November 11, 2012

दीवाली और दौलत



















बह हमसे बोले हसंकर कि आज है दीवाली
उदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं ताली

मैं कैसें उनसे बोलूं कि जेब मेरी ख़ाली
जब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ ताली

बो बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुम
देखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुम

इन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते हम
जिसके ना पास दौलत उससे न बोलते हम

मैंने जो देखा उनको खड़ें बो मुस्करा रहे थे
दीवाली के दिन तो बो दौलत लुटा रहे थे

मैनें कहा ,सच्चाई मेरी पूजा इंसानियत से नाता
तुम जो कुछ भी कह रहे हो ,नहीं है मुझको भाता

बो बोले हमसे हसकर ,कहता हूँ बो तुम सुन लो
दुनियां में मिलता सबकुछ खुशियों से दामन भर लो

बातों में है क्या रक्खा मौके पे बात बदल लो
पैसों कि खातिर दुनियां में सब से तुम सौदा कर लो

बो बोले हमसे हंसकर ,हकीकत भी तो यही है
इंसानों क़ी है दुनिया पर इंसानियत नहीं है