Sunday, November 25, 2012

वक़्त





वक़्त की साजिश समझ कर, सब्र करना सीखियें
दर्द से ग़मगीन वक़्त यू ही गुजर जाता है

जीने का नजरिया तो, मालूम है उसी को बस
अपना गम भुलाकर जो हमेशा मुस्कराता है

अरमानो के सागर में ,छिपे चाहत के मोती को
बेगानों की दुनिया में ,कोई अकेला जान पाता है

शरीफों की शरारत का नजारा हमने देखा है
मिलाता जिनसे नजरें है ,उसी का दिल चुराता है

न जाने कितनी यादो के तोहफे हमको दे डाले
खुदा जैसा ही बो होगा ,जो दे के भूल जाता है

मर्ज ऐ इश्क में बाज़ी लगती हाथ उसके है
दलीलों की कसौटी के ,जो जितने पार जाता है

मदन मोहन सक्सेना

Monday, November 19, 2012

बस्ती




खुशबुओं  की   बस्ती में  रहता  प्यार  मेरा  है 
आज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा है 
उनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा है
अब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है  

जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नहीं मेरा है 
प्यार पाया जब से उनका हमने ,लगता हर पल ही सुनहरा है 
प्यार तो है  सबसे परे ,ना उसका कोई चेहरा है
रहमते उदा की जिस पर सर उसके बंधे सेहरा है

प्यार ने तो जीबन में ,हर पल खुशियों को बिखेरा है
ना जाने ये मदन ,फिर क्यों लगे प्यार पे  पहरा है


काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

Sunday, November 18, 2012

अपना दिल



अपना दिल जब ये पूछें की दिलकश क्यों नज़ारे हैं
परायी  लगती दुनिया में बह लगते क्यों हमारे हैं
ना उनसे तुम अलग रहना ,मैं कहता अपने दिल से हूँ
हम उनके बिन अधूरें है ,बह जीने के सहारे हैं


जीबन भर की सब खुशियाँ, उनके बिन अधूरी है
पाकर प्यार उनका हम ,उनसे सब कुछ हारे हैं 
ना उनसे दूर हम जाएँ ,इनायत मेरे रब करना
आँखों के बह तारे है ,बह लगते हमको प्यारे हैं

पाते जब कभी उनको , तो  आ जाती बहारे हैं 
मैं कहता अपने दिल से हूँ ,सो दिलकश यूँ नज़ारे हैं



काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

Sunday, November 11, 2012

दीवाली और दौलत



















बह हमसे बोले हसंकर कि आज है दीवाली
उदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं ताली

मैं कैसें उनसे बोलूं कि जेब मेरी ख़ाली
जब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ ताली

बो बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुम
देखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुम

इन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते हम
जिसके ना पास दौलत उससे न बोलते हम

मैंने जो देखा उनको खड़ें बो मुस्करा रहे थे
दीवाली के दिन तो बो दौलत लुटा रहे थे

मैनें कहा ,सच्चाई मेरी पूजा इंसानियत से नाता
तुम जो कुछ भी कह रहे हो ,नहीं है मुझको भाता

बो बोले हमसे हसकर ,कहता हूँ बो तुम सुन लो
दुनियां में मिलता सबकुछ खुशियों से दामन भर लो

बातों में है क्या रक्खा मौके पे बात बदल लो
पैसों कि खातिर दुनियां में सब से तुम सौदा कर लो

बो बोले हमसे हंसकर ,हकीकत भी तो यही है
इंसानों क़ी है दुनिया पर इंसानियत नहीं है

Friday, November 9, 2012

दीपावली




मंगलमय हो आपको दीपो का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..

मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलत
तमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरत
सदा मिलती रहे शोहरत  ,रोशन नाम तेरा हो
ग़मों का न तो साया हो, निशा में न अँधेरा हो

दिवाली आज आयी है, जलाओ प्रेम के दीपक
जलाओ प्रेम के दीपक  ,अँधेरा दूर करना है
दिलों में जो अँधेरा है ,उसे हम दूर कर देंगें
मिटा कर के अंधेरों को, दिलों में प्रेम भर देंगें

मनाएं हम तरीकें से तो रोशन ये चमन होगा
सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा  ये बतन होगा
धरा अपनी ,गगन अपना, जो बासी  बो भी अपने हैं 
हकीकत में बे बदलेंगें ,दिलों में जो भी सपने हैं

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।



काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना


Thursday, November 1, 2012

करवाचौथ


करवाचौथ

कल करवाचौथ के दिन भारतबर्ष में सुहागिनें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए चाँद दिखने तक निर्जला उपबास रखती है . पति पत्नी का रिश्ता समस्त उतार चदाबों   के साथ इस धरती पर सबसे जरुरी और पवित्र रिश्ता है .आज के इस दौर में जब सब लोग एक दुसरे की जान लेने पर तुलें हुयें हों तो आजकल  पत्नी का उपवास रखना किसी अजूबे से कम नहीं हैं।  
मेरी  पत्नी (शिवानी सक्सेना )को समर्न्पित एक कबिता :


अर्पण आज तुमको हैं जीवन भर की सब खुशियाँ 

पल भर भी न तुम हमसे जीवन में जुदा होना
रहना तुम सदा मेरे दिल में दिल में ही खुदा बनकर 
ना हमसे दूर जाना तुम और ना हमसे खफा होना 

अपनी तो तमन्ना है सदा हर पल ही मुस्काओ 
सदा तुम पास हो मेरे ,ना हमसे दूर हो पाओ 
तुम्हारे साथ जीना है तुम्हारें साथ मरना है 
तुम्हारा साथ काफी हैं बाकि फिर  क्या करना है

अनोखा प्यार का बंधन इसे तुम तोड़ ना देना 
पराया जान हमको अकेला छोड़ ना देना 
रहकर दूर तुमसे हम जियें तो बो सजा होगी 
ना पायें गर तुम्हें दिल में तो ये मेरी सजा होगी  

कबिता :
मदन मोहन सक्सेना